प्राचीन काल से ही भारत अध्ययन और अध्यापन का विशिष्ट केन्द्र रहा है । विश्व के विभिन्न राष्ट्रों से कई विद्यार्थी और विद्वान ज्ञान की खोज में भारत की ओर रुख करते रहें हैं । आज भी भारत विद्या का एक प्रमुख स्थान माना जाता है । कई लाख विद्यार्थी आज विश्वविद्यालयों और कलाशालाओं में विभिन्न विषयों में स्नातक की शिक्षा पा रहें हैं । ऐसा ही एक विषय है संस्कृत—भारत की प्राचीनतम भाषा जिसमें कई ज्ञानधारायें आजतक बहती आ रहीं हैं । इसी ज्ञानपरम्परा के अध्ययन, अध्यापन और संशोधन के लिये कई संस्थाएं प्रतिष्ठापित हैं । भारत में प्रायः ११०२ कलाशालाओं में बी० ए० संस्कृत की शिक्षा दी जाती है । उन्नताध्ययन के लिये १७ संस्कृत विश्वविद्यालय स्थापित किये गयें हैं जहां संस्कृत की परम्परागत शिक्षा दी जाती है । इनमें से कई संस्थाएं उचित रूप से संस्कृत स्नातक की शिक्षा प्रदान करतीं हैं । इनमें से कई संस्थायें तो विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति भी प्रदान करती है ।
जब इतनी सारी संस्थाओं मे संस्कृत में स्नातक की शिक्षा की उचित व्यवस्था है तब सद्यः संस्थापित इस चिन्मयविश्वविद्यापीठ में क्यों कोई स्नातक के लिये धन देकर प्रवेश ले ? ऐसा क्या है यहां जिसके लिये छात्र करीब करीब एक लाख शुल्कप्रतिवर्ष दे? इसके उत्तर रूप में यह लेख लिखने का यत्न है ।
चिन्मय विश्वविद्यापीठ स्वामी चिन्मयानन्द के एक दिव्य संकल्प को मन में रखते हुये उनके शिष्यों के अथाह प्रयत्न द्वारा २०१६ में जगद्गुरु श्री शङ्कराचार्य जी के मातृगृह में स्थापित की गई । इस विश्वविद्यालय का परम लक्ष्य है प्राचीन और अर्वाचीन ज्ञान का समागम, प्राचीन ज्ञान को आधूनिक व्यवहार मे लाना, और पाश्चात्य विद्याओं का भारतीय विद्याओं के साथ सङ्गमन । इन्हीं लक्ष्यों को आधार मानकर यहां के संस्कृत स्नातक पाठ्यक्रम के साथ-२ आधुनिक विद्याओं के (BBA, B.Com., B.A. Psychology इत्यादि) पाठ्यक्रमों में संस्कृत सम्बन्धी विषयों का भी निवेश किया गया है ।विश्वविद्यालय में सभी स्नातक पाठ्यक्रमों को सात भागों में विभजित किया है, वे इस प्रकार हैं –
- Foundation Courses
- Indic Knowledge Systems I and II: भारतीय ज्ञान परम्परा अट्ठारह विद्या स्थानों से अलङ्कृत है । वे विद्यायें इस प्रकार हैं – ४ वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद), ४ उपवेद (अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, गन्धर्ववेद, स्थापत्यवेद/धनुर्वेद) ६ वेदाङ्ग (शिक्षा, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष, कल्प), मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र और पुराण । प्रस्तुत पत्र में इन चौदह विद्या स्थानों का विस्तृत परिचय और इन सभी का अधुनिक परिप्रेक्ष्य, उपयोग कि विधी उदाहरण सहित सिखायी जाती है ।
- Itihasa: रामायण और महाभारत का अध्ययन कई विद्यालयों मे किया जाता है परन्तु केवल उसमें लिखित श्लोकों का अध्ययन ही प्रधान रूप से होता है । चिन्मय विश्वविद्यापीठ मे रामायण को धर्म के चश्मे से देखा जाता है और इसी दृष्टी से छात्र इसका अध्ययन करते हैं । अर्थात् धर्म क्या है, उसके पालन के मार्ग क्या हैं, आधुनिक काल में धर्म की उपयोगिता इत्यादि ।
- Neeti Shastras: छात्रों को नीतिशास्त्र के विविध ग्रन्थों का परिचय कराया जाता है और उनका जीवन के विविध सन्दर्भों मे उपयोग की विधि दृष्टान्तो सहित समझायी जाती है ।
ऊपर लिखित विषय सभी स्नातकों के लिये समान और अनिवार्य हैं ।
- Proficiency courses: भाषा सम्बन्धित पत्र इस विभाग में समाते हैं ।
- Sanskrit for Communication: इस पत्र में छात्र संस्कृत भाषा में बोलने और लिखने का ज्ञान प्राप्त करता है ।
- Applied Sanskrit Grammar: किसी भी भाषा को समझने के लिये उस भाषा के व्याकरण का ज्ञान सहायक होता है, विशेषतः संस्कृत भाषा में । छात्र संस्कृत ग्रन्थो में छिपे हुए ज्ञान को अच्छी तरह से समझ पाये इस उद्देश से ग्रन्थ को समझने के लिये जितने व्याकरण कि आवश्यकता होती है उतने का ज्ञान सोदाहरण कराया जाता है ।
- Sanskrit: A Language for Eternal Use: इस पत्र में संस्कृत भाषा का अध्ययन ग्रन्थो द्वारा कराया जाता है । जैसे कि आयुर्वेद नीतिशास्त्र आदि ग्रन्थों में उल्लिखित श्लोकों के माध्यम से भाषा का अध्ययन । इस प्रक्रिया में छात्र आयुर्वेद नीतिशास्त्रादि ग्रन्थों के विचारों का भी ज्ञाना प्राप्त करतें हैं ।
इन पत्रों के साथ साथ आङ्ग्लभाषा का भी अध्ययन कराया जाता है ।
- Core courses: विषयविशेष सम्बन्धित पत्र
- Elective courses: विषयविशेष वैकल्पिक पत्र
- Minor courses: जो विषय आपके प्रधान विषय से भिन्न हो और आपके शैक्षणिक जीवन में कई और मार्ग खोलते हों ऐसे विषय minor course के अन्तर्गत आतें हैं । जैसे – यदि कोई management का छात्र है, वह इस विभाग के अन्तर्गत संस्कृत, Psychology विषयों का अध्ययन ऐच्छिक रूप से कर सकता है ।
- Self-Immersion courses: छात्र के सर्वतोमुख अभिवृद्धि के लिये उपयुक्त विषय । इस भाग में योग, आयुर्वेद, सेवा आदि विषयों का ज्ञान दिया जाता है ।
प्रश्न अब भी वही है कि चिन्मय विश्वविद्यापीठ में ही क्यों कोई संस्कृत में स्नातक करे । तो उसका उत्तर है –
एक छात्र या उसके अभिभावक के मन किसी विद्यालय में प्रवेश से पहले कुछ जिज्ञासायें होतीं हैं । जैसे कि –
- किस विषय का चयन करें
- विषय की प्रासङ्गिकता
- विषय का भविष्य
- विषय सम्बन्धित क्षेत्र मे उद्योगावकाश
- अध्यापक कैसे होंगे
- परिसर कैसा होगा
- शुल्क कितना होगा
- छात्रावास की व्यवस्था कैसी होगी
- अन्य व्यवस्थायें जैसे – खाना, क्रीडाङ्गण आदि कैसी होंगी ।
क्या संस्कृत का कोई भविष्य है? क्या संस्कृत स्नातक का कोई भविष्य है? क्या संस्कृत क्षेत्र में उद्योगावकाश है? इत्यादि प्रश्न अभिभावकों और छात्रों कें मन में अवश्य उठतें हैं । इन्ही प्रश्नों की वजह से कई अभिभावक और छात्र संस्कृत की ओर लगाव होने पर भी उस क्षेत्र में अध्ययन से दूर भागतें हैं । इन प्रश्नों में पहला प्रश्न निरर्थक हैं क्योंकि जो भाषा वैदिककाल (जो की १२००० साल भी पुराना माना जाता है) से अबतक अस्तित्व में है उसके भविष्य की चिन्ता हमें नही करनी चाहिये । यह एक सनातन भाषा hai जिसका कोई अन्त नही । दूसरे और तीसरे प्रश्न का उत्तर चिन्मय विश्वविद्यापीठ के संस्कृत स्नातक पाठ्यक्रम में देने का प्रयत्न किया गया है ।
चिन्मय विश्वविद्यापीठ में जो छात्र संस्कृत में स्नातक की पदवी प्राप्त करता है वह
- Foundational courses के द्वारा संस्कृत वाङ्मय के सभी विषयों का सामान्य ज्ञान प्राप्त करता है । उन विषयों की प्रस्तुत समाज में और विषयों में निवेश या उपयोग करनें की विद्या से परिचित होता है । Foundational course संस्कृत के छात्र अन्य छात्रों के साथ ही कक्षा में होतें हैं । यहां छात्रों का वर्गों में विभाग किया जाता है, जहां प्रत्येक वर्गों में विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित छात्र होतें हैं । अध्यापक इन्हें संशोधनात्मकं विषय देकर उनपर निबन्ध लिखनें का कार्य देतें हैं । इससे प्रत्येक छात्र अपने क्षेत्र से भिन्न क्षेत्र में भी ज्ञान प्राप्त करता है । कई ग्रन्थों के अध्ययन में लीन अपने को व्यस्त भी रखता है ।
- Proficiency courses के माध्यम से छात्र आङ्ग्ल भाषा के व्यवहार में और सङ्गणक के उपयोग में सामर्थ्य प्राप्त करता है । यहां इन विषयों को व्यवहार की दृष्टी से पढाया जाता है जिससे छात्र जब समाज मे प्रवेश पाता है तब उसे वही आदर मिले जो अन्य क्षेत्रों के विद्यार्थियों को मिला करता है ।
- Coreऔर core electiveपत्रों में छात्र व्याकरण, साहित्य और दर्शन का ज्ञान प्राप्त करता । इससे वह इन तीनों विषयों में किसी भी एक विषय में या सामान्य संस्कृत में स्नातकोत्तsर (आचार्य अथवा MA) पदवी पाने की अर्हता प्राप्त करता है ।
- Minor courses: पाठ्यप्रणाली के माध्यम से छात्र अपने लिये विभिन्न क्षेत्रों के द्वार खोलता है । जैसे कि यदि छात्र इस पाठ्यप्रणाली में ६ में से चार पत्र Accounts से सम्बन्धित लेता है तो वह भविष्य में उसी क्षेत्र में आगे बढ सकता है । अगर management के पत्रों का चयन करता है तो भविष्य में MBA कर सकता है । यदि Psychologyसम्बन्धित पत्रों का चयन करता है तो MSc Psychologyकर सकता है । इनके अलावा भी कई विभिन्न क्षेत्रों में छात्र अपने भविष्य का निर्माण स्वयं कर सकता है । न केवल इतना अपि तु छात्र अपनी रुचि के अनुसार यदि किसी और विषय का अध्ययन करना चाहे तो इस प्रणाली के अन्तर्गत कर सकता है । छात्र अपनी इच्छा इस प्रणाली मे पूर्ण कर सकता है ।
- छात्र के सर्वतोमुखाभिवृद्धि के लिये योगायुर्वेद और सेवा का प्रावधान है, यहां छात्र के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये योगाभ्यास कराया जाता है और आयुर्वेदिक स्वस्थ दिनचर्या का परिचय कराया जाता है । समाज से जुडे रहने के लिये सामाजिक कार्यों में छात्रों को प्रेरित किया जाता है । एक उदाहरण – जब केरल बाढ से पीडित था तब चिन्मय विश्वविद्यापीठ के छात्रों ने कई सुरक्षा शिबिरों में जाकर लोगों की निरन्तर सहायता की ।
ये तो हुये पाठ्यक्रम से सम्बन्धित कुछ अंश । अब बाकी जिज्ञासओं पर कुछ प्रकाश डालतें हैं ।
- अध्यापक—चिन्मय विश्वविद्यापीठ यद्यपि संस्कृत विश्वविद्यालय नही है तथापि संस्कृत और भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति इसका सम्मान अवर्णनीय है । यह यहां के अध्यापक सम्पत् को देखकर अनुमान लगाया जा सकता हैं । यहां नियुक्त ३० अध्यापकों मे १२ के करीब अध्यापक संस्कृत के विभिन्न शास्त्रों मे निष्णात हैं । विशेष यह है की सभी अध्यापक PhD पदवी प्राप्त हैं और प्रत्येक अध्यापक २ से अधिक विषयों के विद्वान हैं । भारत के विभिन्न प्रान्तों से चित अध्यापक यहां निरन्तर छात्रों के उत्कर्ष के लिय प्रयत्नरत हैं । अध्यापकों के विषय में अधिक जानकारी के लिये अन्तर्जाल के इस सङ्केत की सहायता लें—https://cvv.ac.in/faculty
- परिसर—अतीव शान्त और अध्ययन योग्य परिसर ।
- छात्रावास– छात्रों के लिये अपेक्षित परिकरों (मञ्च, टेबल, कुर्सी इत्यादि) से सुसज्जित छात्रावास की व्यवस्था है । स्वच्छता का ध्यान नित्य रखा जाता है । प्रत्येक कमरे में दो या तीन छात्रों को रखा जाता है । शौचालय प्रकोष्ठ से जुडा हुआ है ।
- अन्य व्यवस्थायें—सभी व्यवस्थायें उत्कृष्ट स्तर से कि गयी है । छात्रों के लिये चौबीस घण्टे wifi की व्यवस्था है, १४ घण्टे ग्रन्थालय और सङ्गणक प्रयोगालय खुला रहता है । ऐसी कई और आधुनिक व्यवस्थाओं से युक्त रहता है यहां के छात्र का जीवन ।
- छात्रों के आनन्द के लिये कई प्रकार की क्रीडायें, स्पर्धायें आदि आयोजित की जाती हैं ।
अब एक मुख्य विषय—शुल्क । संस्कृत स्नातक के लिये यहां शुल्क है 1,60,000 रुपये प्रतिवर्ष । इस सङ्ख्या को देखकर ही कई लोग घबरा जातें हैं पर यह विषय यहां विचारणीय है कि इस शुल्क में भोजन, वास और अध्ययनकी सामग्री सम्मिलित है । इतनी उच्चकोटी के व्यवस्था के साथ जब उच्चकोटी का अध्ययन कराया जाता तब यह मूल्य अधिक नही है । ऊपर दिये गये विशिष्टतायें चिन्मय विश्वविद्यापीठ के बी०ए० संस्कृत को अन्य संस्थाओं के बी०ए० संस्कृत से पृथक् ठहराती है । सभी संस्थाओं की अपनी अपनी विशेषतायें हैं । उपर दी गयी विशेषतायें इस संस्था की हैं । छात्र और अभिभावक अपने अन्तःकरण से निर्णय लें कि उनके लिये क्या उत्तम है । अधिक विवरण के लिये कृपया हमारे अन्तर्जाल की सहायता लें—www.cvv.ac.in
1 https://targetstudy.com/colleges/ba-sanskrit-degree-colleges-in-india.html
2 https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Sanskrit_universities_in_India